हिंदू धर्म में शनि देव को न्याय के देवता माना जाता है। वे मनुष्यों के कर्मों के अनुसार उन्हें फल देने वाले हैं — अच्छे कर्म पर कृपा और बुरे कर्म पर दंड। इस कथा में राजा विक्रमादित्य और शनि देव के बीच घटित एक अद्भुत प्रसंग का वर्णन है, जो हमें शनि देव की न्यायप्रियता और शक्ति का बोध कराता है।
सबसे बड़ा कौन?
एक बार स्वर्गलोक में यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ — नवग्रहों में सबसे बड़ा कौन है?
देवताओं के बीच विवाद इतना बढ़ा कि युद्ध की स्थिति बन गई। तब सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और उनसे निर्णय देने को कहा।
देवराज इंद्र ने उत्तर देने में असमर्थता जताई और बोले:
“पृथ्वी लोक में उज्जयिनी नगरी के राजा विक्रमादित्य न्याय के लिए प्रसिद्ध हैं, उन्हीं से यह निर्णय करवाना उचित होगा।”
राजा विक्रमादित्य की परीक्षा
देवता पृथ्वीलोक में उज्जयिनी पहुंचे और राजा विक्रमादित्य के समक्ष प्रश्न रखा। राजा थोड़ी देर सोच में पड़ गए, क्योंकि प्रत्येक ग्रह अपने-अपने प्रभाव में अत्यंत शक्तिशाली था। किसी एक को बड़ा कह देना शेष आठ का अपमान हो सकता था।
राजा ने उपाय निकाला:
उन्होंने नौ धातुओं — सोना, चांदी, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लोहा — के नौ आसन बनवाए।
ग्रहों को इन पर बैठाया गया। सबसे पहला आसन सोने का और सबसे अंतिम लोहे का था। जब सभी ग्रह अपने-अपने आसन पर बैठ गए, राजा ने कहा:
“जो पहले बैठा, वही सबसे बड़ा। निर्णय आप सब ने स्वयं दे दिया।”
शनि देव लोहे के अंतिम आसन पर बैठे थे। उन्हें यह निर्णय अपमानजनक लगा।
शनि देव का क्रोध
शनि देव बोले:
“राजा! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठा कर मेरा अपमान किया है। क्या तुम नहीं जानते कि मैं एक राशि में साढ़े सात वर्षों तक रहता हूँ? मैंने राम को वनवास दिलवाया, रावण के वंश का नाश किया। अब तुम्हारा सर्वनाश निश्चित है।”
राजा ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया:
“हे शनिदेव, जो भाग्य में लिखा है, वही होगा। मैं न्याय से विचलित नहीं हो सकता।”
शनि देव क्रोधित होकर वहां से चले गए। परंतु राजा को इस बात का भान नहीं था कि आने वाला समय कितना कठिन होगा।
शनि की लीला: घोड़े का व्यापारी
कुछ समय बाद शनि देव घोड़े के व्यापारी का रूप धारण कर उज्जयिनी पहुंचे। उनके पास दुर्लभ और सुंदर घोड़े थे।
राजा स्वयं एक घोड़े को चलाकर उसकी चाल देखना चाहते थे।
जैसे ही वे सवार हुए, घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा। राजा को दूर जंगल में ले जाकर वह अचानक अदृश्य हो गया। राजा विक्रमादित्य रास्ता भटक गए।
पीड़ा की शुरुआत
भूखे-प्यासे भटकते हुए राजा एक चरवाहे से मिले, जिसने उन्हें पानी पिलाया। बदले में राजा ने अपनी अंगूठी दी।
फिर वे एक नगर पहुंचे और एक सेठ की दुकान पर विश्राम किया।
सेठ ने उनकी उपस्थिति को शुभ मानते हुए उन्हें अपने घर भोजन के लिए बुलाया। वहां एक सोने का हार खूंटी पर लटका था।
जब सेठ बाहर गया, तो राजा के सामने वह हार अचानक खूंटी में समा गया।
सेठ लौटा, हार गायब देखा — और राजा पर चोरी का आरोप लगाया गया। नगर के राजा ने गुस्से में विक्रमादित्य के हाथ-पांव कटवाकर सजा दी और उन्हें सड़क पर फेंक दिया गया।
अंधकार में आशा की किरण
कुछ दिनों बाद एक तेली उन्हें उठाकर अपने घर ले गया और कोल्हू चलाने के लिए रख लिया।
राजा दिन-रात बैलों को आवाज देकर हांकते। यही उनके भोजन का माध्यम बन गया।
एक रात राजा ने मेघ मल्हार राग गाया। संयोगवश उस नगर की राजकुमारी मोहिनी का रथ वहां से गुजर रहा था। वह आवाज सुनकर मोहित हो गई।
उसने पता करवाया — वह गायक अपंग है, पर स्वर दिव्य है।
राजकुमारी ने जिद पकड़ ली कि वह उसी अपंग से विवाह करेगी। माता-पिता के लाख समझाने पर भी उसने खाना-पीना छोड़ दिया। अंततः विवाह सम्पन्न हुआ।
शनिदेव का आशीर्वाद
विवाह की रात शनिदेव स्वप्न में प्रकट हुए। उन्होंने कहा:
“राजा! यह मेरी साढ़े साती थी। यह सब मैंने तुम्हारे अहंकार के दंडस्वरूप किया। लेकिन अब समय पूरा हुआ।”
राजा ने क्षमा मांगी और प्रार्थना की:
“हे शनिदेव! जैसा दुःख आपने मुझे दिया, वैसा किसी और को न देना।”
शनिदेव प्रसन्न हुए और कहा:
“जो कोई मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत करेगा और मेरी कथा सुनेगा — उस पर मेरी कृपा बनी रहेगी।”
अंत भला तो सब भला
सुबह राजा विक्रमादित्य जागे तो देखा — उनके हाथ-पांव फिर से सामान्य हो गए हैं। राजकुमारी चकित रह गई। राजा ने पूरा वृत्तांत सुनाया।
उधर, सेठ के घर वह खूंटी अचानक वही हार उगल देती है। सेठ राजा से क्षमा मांगता है और अपनी कन्या का विवाह भी उनसे कर देता है।
राजा दोनों रानियों के साथ उज्जयिनी लौटते हैं। वहां उनका भव्य स्वागत होता है। दीप जलाकर दीवाली मनाई जाती है।
अगले दिन राज्य में घोषणा होती है:
“शनिदेव सभी ग्रहों में श्रेष्ठ हैं। शनिवार को उनका व्रत करें, पूजा करें और कथा अवश्य सुनें।”
उपसंहार
यह कथा हमें सिखाती है कि शनि देव क्रोध करते हैं, पर न्याय भी उतना ही सटीक करते हैं। वे किसी का बुरा नहीं चाहते, केवल कर्मों का फल देते हैं।
शनि देव से डरे नहीं — नियम, भक्ति और श्रद्धा से उन्हें प्रसन्न करें।
शनिवार व्रत विधि (संक्षेप में):
प्रातः स्नान कर काले वस्त्र धारण करें
सरसों का तेल चढ़ाएं, चींटियों को आटा डालें
शनि मंत्र का जाप करें: “ॐ शं शनैश्चराय नमः”
शनि कथा अवश्य सुनें
संयम, दान और सेवा का पालन करें
Shani Dev, also known as Saturn, is one of the nine powerful celestial deities (Navagrahas) in Hindu astrology. He is considered the lord of karma and justice, rewarding or punishing individuals based on their past deeds.
Q1: शनि देव की साढ़े साती कितने साल चलती है?
A1: शनि देव की साढ़े साती 7.5 वर्षों तक चलती है।
Q2: शनिवार को क्या नहीं करना चाहिए?
A2: शनिवार को नाखून काटना, बाल कटवाना, झूठ बोलना और शराब पीना वर्जित माना जाता है।
Q3: शनिवार को शनि देव को क्या अर्पण करें?
A3: काले तिल, सरसों का तेल, नीला फूल, काला कपड़ा और लोहा अर्पण करें।